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Tuesday, August 20, 2013

हैप्पी राखी भैया

इस बार सोच रही थी कि राखी के शुभ अवसर पर मैं अपने एकमात्र एकलौते अक्की भाई को क्या दूं! सोचते-सोचते सोच में आ गयी बहुत सारी बातें, ढेर सारी यादें।
भैया के कान्वेंट में पढ़ने के कारण बचपन में हम दोनों को साथ रहने का ज्यादा मौका नहीं मिला। जब थोड़े बड़े हुए तो दोनों की उम्र और सोच के अंतर ने मुश्किल खड़ी कर दी। भैया अपनी उम्र से ज्यादा समझदार और परिपक्व हो गया, लेकिन दिक्कत तब आई जब वो मुझसे भी यही समझदारी और परिपक्वता की उम्मीद करता रहता था।  खैर, हम दोनों लड़ते-झगड़ते, एक-दूसरे को चिढ़ाते-रुलाते बड़े हो गए।
अब जब कुछ सालो से हम दोनों दिल्ली में साथ रहने लगे तो गज़ब के मजेदार पल हमने बिताए। हमारी बाइक राइड्स, रोड ट्रिप्स, वीकेंड के मज़े, मेरे हाथ की जली सब्जी, मोटी रोटियाँ, भैया के हाथ की सुपर टेस्टी टमाटर की सब्जी, फ्रिज पे लगे हाथ के निशान के लिए भैया की चिकचिक और पता नहीं क्या-क्या!! ऑफिस से वापस आने के बाद मेरा ये कहना, "...भैया, इंडिया गेट चलो ना."  फिर भैया का कहना "अभी????" तब भैया का चेहरा देखने लायक बन जाता था।
रोज़ रात को ऑफिस से लौटकर कार की websites एक्सप्लोर करना और कहना ये देखो इसमें ये टेक्नोलॉजी है.. इसमें ये फैसिलिटी है। ...फ़ाईनली तुमने चार चक्का खरीद ली, उसके बाद हमारी ट्रिप्स लगाना, और ढेर सारे मज़े करना...

धीरे-धीरे भैया का कामयाब होना, आगे बढ़ना, मुझसे ऑफिस की बातें discuss करना, घर में वो dice के डिजाईन वाला स्टूल और रेस्ट वाला मोढ़ा लाना, नए परदो के लिए पूरा तिलक नगर मार्किट छान मारना, घर सजाना, तुम्हारे एक रूम के फ्लैट को मेरे चुटूर-पुटूर सामान से भर देना और तुम्हारा कहना कि "कितना सामान हो गया है घर में, अब शिफ्ट करने के टाइम बड़ा ट्रक बुलवाना पड़ेगा"

...सेंटी बातें हो गयी न !

वैसे सबसे ज्यादा मज़ा तब आता है जब भैया टूथपेस्ट के ट्यूब को देखकर गुस्सा करता है (टूथपेस्ट को हमेशा बीच से दबाने की आदत रही है मेरी) और मेरी इस आदत से भैया हमेशा ही त्रस्त रहता है। वैसे भैया भी मुझे irritate करने में पीछे नहीं रहा, जब तक एक बार रुला नहीं ले इसका मन नहीं भरता।

आज भी हर सुबह जब भैया फ़ोन में Temple Run और BikeRaceTFG/Subway Surfers खेलता है, तो मोबाइल हिलाकर गेम खराब करने में बड़ा मज़ा आता है.. हाहाहा ! और हर सुबह दूध वाली चाय के बाद ये कहना कि "नन्ही, तुम लेमन टी बनाने वाली थी, बनाओगी क्या!"

बहुत सारी छोटी-छोटी बातें है हमारी, हम लड़े-झगडे, ५ दिन तक बात नहीं की, गुस्सा हुए, लेकिन प्यार भी एक-दूसरे से उतना ही किया।  ऐसे ही हँसते-खेलते-लड़ते-झगड़ते-मज़े करते रहे हम दोनों, यही दुआ है :) रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ !

3 comments:

  1. you have nicely and truthfully defined akash, god bless u both.....

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  2. महाबेशर्म इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियम-कायदे उस समय बदल जाते है जब यह खुद गलती करता है. अगर देश का कोई भी मंत्री भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ये चीख-चीख कर उसके इस्तीफे की मांग करता है लेकिन जब किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया का कोई पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ना तो वह अपनी न्यूज़ एंकरिंग से इस्तीफा देता है और बड़ी बेशर्मी से खुद न्यूज़ रिपोर्टिंग में दूसरो के लिए नैतिकता की दुहाई देता रहता है. कमाल की बात तो यह है की जब कोई देश का पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो उस न्यूज़ रिपोर्टिंग भी बहुत कम मीडिया संगठन ही अपनी न्यूज़ में दिखाते है, क्या ये न्यूज़ की पारदर्शिता से अन्याय नहीं? हाल में ही जिंदल कम्पनी से १०० करोड़ की घूसखोरी कांड में दिल्ली पुलिस ने जी मीडिया के मालिक सहित इस संगठन के सम्पादक सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा ३८४, १२०बी,५११,४२०,२०१ के तहत कोर्ट में कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया है. इतना ही नहीं इन बेशर्म दोषी संपादको ने तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद सबूतों को मिटाने का भी भरपूर प्रयास किया है. गौरतलब है की कोर्ट किसी भी मुजरिम को दोष सिद्ध हो जाने तक उसको जीवनयापिका से नहीं रोकता है लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी है की जो पैमाना हमारे मुजरिम राजनेताओं पर लागू होता है तो क्या वो पैमाना इन मुजरिम संपादकों पर लागू नहीं होता? क्या मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं है ? क्या किसी मीडिया संगठन के सम्पादक की समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? अगर कोई संपादक खुद शक के दायरे में है तो वो एंकरिंग करके खुले आम नैतिकता की न्यूज़ समाज को कैसे पेश कर सकता है? आज इसी घूसखोरी का परिणाम है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एक-एक संपादक करोड़ो में सैलरी पाता है. आखिर कोई मीडिया संगठन कैसे एक सम्पादक को कैसे करोड़ो में सैलरी दे देता है ? जब कोई मीडिया संगठन किसी एक सम्पादक को करोड़ो की सैलरी देता होगा तो सोचिये वो संगठन अपने पूरे स्टाफ को कितना रुपया बाँटता होगा? इतना पैसा किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठन के पास सिर्फ विज्ञापन की कमाई से तो नहीं आता होगा यह बात तो पक्की है.. तो फिर कहाँ से आता है इतना पैसा इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठनो के पास? आज कल एक नई बात और निकल कर सामने आ रही है कि कुछ मीडिया संगठन युवा महिलाओं को नौकरी देने के नाम पर उनका यौन शोषण कर रहे है. अगर इन मीडिया संगठनों की एस.ई.टी. जाँच या सी.बी.आई. जाँच हो जाये तो सुब दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आज जो गोरखधंधा चल रहा है उसको सामने लाने का मेरा एक छोटा सा प्रयास था. में आशा करता हूँ कि मेरे इस लेख को पड़ने के बाद स्वयंसेवी संगठन, एनजीओ और बुद्धिजीवी लोग मेरी बात को आगे बढ़ाएंगे और महाबेशर्म इलेट्रोनिक मीडिया को आहिंसात्मक तरीकों से सुधार कर एक विशुद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे ताकि हमारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया विश्व के लिए एक उदहारण बन सके क्यों की अब तक हमारी सरकार इस बेशर्म मीडिया को सुधारने में नाकामयाब रही है. इसके साथ ही देश में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ किसी भी जांच के लिए न्यूज़ ब्राडकास्टिंग संगठन मौजूद है लेकिन आज तक इस संगठन ने ऐसा कोई निर्णय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ नहीं लिया जो देश में न्यूज़ की सुर्खियाँ बनता. इस संगठन की कार्यशैली से तो यही मालूम पड़ता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तमाम घपलों के बाद भी ये संगठन जानभूझ कर चुप्पी रखना चाहता है.
    धन्यवाद.
    राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
    एम. ए. जनसंचार
    एवम
    भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
    फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com

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