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Thursday, February 14, 2013

मूक नहीं ये लघु कहानी

मेट्रो से घूमना मुझे बहुत पसंद है. अक्सरहाँ लोगो की बातें सुनती रहती हूँ. जितना मज़ा लोगो की बातों को सुनकर आता है उतना तो कानो में हेडसेट्स लगाकर गाने सुनने में भी नहीं आता. लेकिन आज जब दो लोग (एक लड़का और एक लड़की) मेट्रो में मेरे पास आकर खड़े हुए तो मुझे ना ही उनकी बात सुनाई दे रही थी और ना ही समझ आ रही थी. बस उनकी आपस में हो रही 'बातों' को मैं देख पा रही थी, क्यूंकि दोनों मूक थे. सांकेतिक भाषा (Sign Language) के ज़रिये दोनों एक-दूसरे से चटर-पटर बातें किये जा रहे थे. बहुत समझने की कोशिश कर रही थी मैं. और कुछ लोग उन्हें देखकर हंस रहे थे, वहीं कुछ भौचक्के से थे. जो थोड़ी बातें मुझे समझ आयी..वो कुछ ऐसी थी...
लड़की कह रही थी, "तुमपे चश्मा बहुत अच्छा लगता है." लड़के ने कहा, "कुछ दिनों पहले ही पहनना शुरू किया है".... दोनों नहाने की,खाने की,मेट्रो की ढेर सारी बातें किये जा रहे थे. आसपास के लोगो की कोई फ़िक्र नहीं क्यूंकि ना वो शोर कर रहे थे..और ना ही उन्हें शोर महसूस हो रहा था. और मैं सोच रही थी, यार..मुझे Sign Language क्यूँ नहीं आती..अगर आती होती तो और बातें समझ पाती.
अच्छा हैं ना, उन दोनों को कोई फ़िक्र नहीं थी..कौन क्या बोल रहा है.. क्या कर रहा है!! मस्त थे दोनों एक-दूसरे में.
बर्फी की तरह...

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